- हाल उस क्षेत्र के जो शहर को वाटर सप्लाय करने वाले प्लांट से सटा हुआ
दैनिक भास्कर
May 29, 2020, 08:03 AM IST
झाबुआ. गर्मी रिकार्ड तोड़ रही है और जलसंकट भी लोगों को परेशान कर रहा है। जिले में कई जगह से ऐसी खबरें सामने आ रही है कि लोगों को पानी के लिए दूर तक भटकना पड़ रहा है। पहले बात करते हैं शहर की। यहां का किशनपुरी इलाका अनास नदी के किनारे है। ये शहर में वाटर सप्लाय करने वाले प्लांट से लगा हुआ है, लेकिन लोगों को पानी नहीं मिल रहा। लाेगों को आधा किलोमीटर दूर तक हैंडपंप से पानी लाना पड़ता है। गरीब बस्ती वालों के पास साधन नहीं है, लेकिन पानी की जरूरत तो है। ऐसे में घरों के बच्चे इस तरह डंडे पर पानी की कैन लटकाकर पानी ले जाते हैं। ये फोटो हमें किशनपुरी क्षेत्र में रहने वाले कृष्णा पारीक ने उपलब्ध कराया है। उन्होंने बताया, बच्चे हर दिन गर्मी के बीच पानी ला रहे हैं। वो जैसे-तैसे ये कैन उठाकर कुछ दूर चलते हैं, फिर रुककर आराम करते हैं, फिर उठकर चल देते हैं।
ये परेशानी इसलिए
शहर की 47 करोड़ की पेयजल योजना का काम पूरा होने के बावजूद ये शुरू नहीं हो पाई। एक साल हो गया, लगातार नई तारीख दी जा रही है। अभी पीएचई काम देख रही है, नई योजना का काम नगर पालिका के पास होगा। बैराज बन गया, लाइन डल गई, फिल्टर प्लांट बन गया, फिर भी पानी नहीं मिल रहा। कारण ये कि शहर के पाइप लाइन विस्तार के लिए नया बजट नहीं मिला। जहां लाइन डल गई, वहां कनेक्शन देने के लिए अभी तक सिस्टम नहीं बन पाया।
हल क्या : पेयजल योजना फौरन नगर पालिका को हैंडओवर करके घरों को कनेक्शन दिए जाएं। पाइपलाइन बढ़ाने के प्रस्ताव का बजट लाने जनप्रतिनिधियों को कोशिश करना होगी। तब तक टैंकरों से इन घरों तक पानी पहुंचाया जाए।
कुआं 2 किलोमीटर दूर, बैलगाड़ी से पानी लाकर ड्रमों पर ताले लगाते हैं
इससे बुरे हाल पेटलावद से 6 किलोमीटर दूर मातापाड़ा गांव के हैं। गांव में कई हैंडपंप सूख चुके हैं, जो चल रहे हैं, उनमें पानी कम हो गया। गांव की महिला सुनीता कटारा ने बताया, यहां पानी लेने जाएं तो 24 घंटे में भी नंबर नहीं आता। गांव के लोगों के अनुसार डाबरिया फलिया में एक निजी कुआं है, जिसमें पानी है। लगभग सभी लोग सुबह से यहां पानी के लिए चले जाते हैं। बैलगाड़ी, साइकिल लेकर और पैदल भी। बच्चे भी सुबह से इस काम में लगते हैं। कटारा फलिया के माना ने बताया, बड़ी मुश्किल और मेहनत से पानी मिलता है। लोग घर पर ड्रमों पर ताला लगाते हैं कि कहीं पानी चोरी न हो जाए। हर साल यही हाल होते हैं। तेरसिंह कहते हैं, पानी की जरूरत ज्यादा है। इसलिए सोशल डिस्टेंसिंग के बारे में उस समय कोई नहीं सोच पाता।
ये परेशानी इसलिए
यहां जलस्तर हर साल काफी नीचे तक चला जाता है। खेती का इलाका होने और अंधाधुंध तरीके से बोरवेल होने से ये होता है। कुएं भी हैं, लेकिन ज्यादातर सूख रहे हैं। माही की नहर से पानी लाने का काम चल रहा है। इसकी गति काफी धीमी है। लोग कई साल से इसका इंतजार कर रहे हैं।
हल क्या : माही नहर का काम जल्दी पूरा हो। कुओं और हैंडपंप की रिचार्जिंग का सिस्टम बनाया जाए। ग्राम पंचायत को तब तक वैकल्पिक व्यवस्था कर पानी पहुंचाना चाहिए।