- ऐतिहासिक सिख धर्मस्थल के पुर्ननिर्माण में घटिया सामग्री का इस्तेमाल
- पाकिस्तान में सिख समुदाय इमरान खान सरकार से नाराज
दैनिक भास्कर
Apr 18, 2020, 10:26 PM IST
इस्लामाबाद. पाकिस्तान में करतारपुर साहिब गुरुद्वारे के आठ गुंबद शनिवार को मामूली आंधी में ढह गए। इनका निर्माण दो साल पहले यानी 2018 में हुआ था। अब कंस्ट्रक्शन क्वॉलिटी पर सवालिया निशान लग रहे हैं। पाकिस्तान में सिख कम्युनिटी भी इससे नाराज है। लोगों का कहना है कि इमरान खान सरकार में किसी अन्य मजहब को सम्मान नहीं मिलता। लोगों का यह भी आरोप है कि इमरान के लिए करतारपुर सिर्फ पॉलिटकल स्टंट था।
This is how #KartarpurSahib looks like months after its inauguration…
Few domes of #Kartarpur Sahib Gurudwara in #Pakistan fell after a dust storm hit the area.
Poor quality of construction; poor maintenance and upkeep by Pakistan. pic.twitter.com/Yfsv3koUQj— Geeta Mohan گیتا موہن गीता मोहन (@Geeta_Mohan) April 18, 2020

सिखों के दो धर्मस्थल
पाकिस्तान में सिखों के दो पवित्र तीर्थ स्थल हैं। लाहौर से लगभग 75 किलोमीटर दूर ननकाना साहिब। ये गुरु नानक देवजी महाराज का जन्म स्थल है। दूसरा करतारपुर। यहां गुरु नानकदेव अंतरध्यान हुए थे। यह लाहौर से लगभग 117 किलोमीटर दूर है। करतारपुर साहिब गुरुद्वारे में भारतीय सिख श्रद्धालुओं के लिए करतारपुर कॉरीडोर बनाया गया था। पिछले साल नवंबर में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने अपने – अपने देशों में इसका उद्घाटन किया था। भारत-पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा से करतारपुर 3.80 किलोमीटर दूर है। गुरु नानक देव जी अपनी 4 प्रसिद्ध यात्राओं को पूरा करने के बाद 1522 में परिवार के साथ करतारपुर में रहने लगे थे।

फाइबर से बनाए गए थे गुंबद
करतारपुर गुरुद्वारे का जीर्णोद्धार और रंगरोगन किया गया था। गुरुद्वारा परिसर का भी पुर्ननिर्माण कराया गया था। गुंबदों के निर्माण में सीमेंट, लोहे और कंक्रीट का इस्तेमाल नहीं हुआ है। ये गुंबद फाइबर से बनाए गए थे। लेकिन, अब साफ हो गया है कि फाइबर भी बेहद घटिया क्वॉलिटी का था। ये मामूली आंधी भी नहीं झेल सके।
रावी नदी के किनारे बसा है करतारपुर
गुरु नानक देव जी की सोलहवीं पीढ़ी के रूप में डेरा बाबा नानक स्थित गुरुद्वारा चोला साहिब में सेवाएं निभा रहे सुखदेव सिंह और अवतार सिंह बेदी बताते हैं कि गुरु नानक देव ने रावी नदी के किनारे बसाए नगर करतारपुर में खेती कर ‘नाम जपो, किरत करो और वंड छको’ (नाम जपें, मेहनत करें और बांटकर खाएं) का संदेश दिया था। इस के बाद सिखों ने लंगर कराना शुरू किया था। इसी जगह भाई लहणा जी को गुरु गद्दी भी सौंपी थी, जिन्हें सिखों के दूसरे गुरु अंगद देव के नाम से जाना जाता है।
1925 में 1 लाख 35 हजार 600 रुपए से बना था गुरुघर
इतिहासकारों के अनुसार, करतारपुर में गुरुघर बनाने के लिए मांग उठी तो तत्कालीन गवर्नर दुनी चंद ने सिख समुदाय को 100 एकड़ जमीन मुहैया करवाई थी। 1925 में गुरुघर के निर्माण पर खर्च आई 1 लाख 35 हहजार 600 रुपए की रकम पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह ने दान की थी। वो पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के दादा थे।
आजादी के बाद 2001 के यहां पहली बार बंटा था लंगर
जब भारत का बंटवारा हुआ तो पाकिस्तान की तरफ रहने वाले लाखों सिख हिंदुस्तान आ गए। उसी समय यह गुरुद्वारा वीरान हो गया। बरसों तक यह जगह उजाड़ रही। मगर उस दौर में भी गुरु नानक के कुछ मुसलमान भक्त यहां आते रहे। 1995 में पाकिस्तान की सरकार ने करतारपुर गुरुघर की मरम्मत का काम शुरू किया था, जो 2004 में पूरा हुआ था। आजादी के बाद करतारपुर गुरुद्वारे में 2001 में पहली बार यहां लंगर बंटा था। अकाली दल के नेता कुलदीप सिंह वडाला के तरफ से ‘करतारपुर रावी दर्शन अभिलाखी संस्था’ की शुरुआत की गई और 13 अप्रैल 2001 के दिन बैसाखी के दिन अरदास की शुरुआत हुई।